...

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माँ तेरा साथ...
कुछ शब्द - जो अब सुनने को नही,
कुछ बातें- जो अब करने को नही,
कुछ यादें - जो अब भूलने को नही,
कुछ लम्हे- जो अब साथ बिताने को नही,
कुछ गीत - जो अब गुनगुनाने को नही,
कुछ मीत - जो अब बनाने को नही,
कुछ रीत - जो अब निभाने को नही,
कुछ प्रीत - जो अब लुटाने को नही,
पर कुछ तो है जो अब भी बचा है,
सीने में मेरे अभी कहीं तो छुपा है,
जो होती है शाम तो वो बहक जाता है,
बन के अश्क वो आँखों से बह जाता है,
लड़ के हालातों से अपने जब थक जाता है,
टीस तेरे ना होने का चुभ जाता है,
है हौसला की इससे से भी पार पा जाऊँगा,
पर साथ तेरा फिर कभी क्या मै पा पाऊँगा_!!
© दीपक