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सनातन का न आरंभ न अंत
मैं स्तब्ध हूं क्यों न जाना अपनी पहचान को
विज्ञान को सम्मान को
मैं राम के देश की वासिन हूं
सुशूर्त के शल्य चिकत्सा के ज्ञान से अब वाकिफ हूं
आर्यभट्ट ने जो शून्य दिया उसकी भी में कायल हूं
ब्रह्गुप्त ने जो गुरुत्वाकर्षण दिया की में प्रशंसक हूं
कोटिल्या की अर्थशास्त्र अभी हम तक पहुंची ही नहीं
लेकिन विदेशों में ये रिसर्च का विषय बन रही
अगस्त्य को बचपन में मां के मुख से सुना
आज जाना उनकी इलेक्ट्रोप्लेटिंग और बिजली को बनाने की कहानी
सनातन वो सब सीखता
स्त्रियों को देवी मानकर आगे बढ़ता
पति के नाम से पहले पत्नी का नाम आता
सारा ज्ञान विज्ञान इसके भीतर मिल जाता
कोई न माने मैंने माना
सनातन कल आज कल हमेशा
रहेगी गौरव की गाथा