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संघर्ष क़ी राह
संघर्षों में पला, संघर्षों में जला।
थे आँखों में सपने अधूरे, चला करने पूरे॥

सच बोलूँ तो असली सपने सोने नहीं देते।
बंद नेत्रों से दूनियाँ बदलने क़ी चाह कभी पूरी नहीं होती।

जीवन में फूल कम काँटे ज्यादा मिलेंगे।
कर्मठ व्यक्ति वो है जो तूफाँ के लहरोंकेविरूद्ध तैरे॥

खुद बदलते नहीं दोष औरों पे मढ़ देते।
यदि सभी अपने-अपने मूल्यों को समझें, कसम से-

विश्व स्वर्ग बन जाए, ये राहें कई बार भटकाएंगी।
विश्व-विजेता वो है जो सबको एक सूत्र में बाँधे-

सप्रेम ना कि ईर्ष्या और भेदभाव से-
नफरत क़ी वजह से सिर्फ विनाश संभव है।

वहीं प्रेम का अमृत सबको एक सूत्र में बाँधने में समर्थ होती है- ये सबसे वृहदसंघर्षहै॥

दिव्य प्रकाश मिश्र
लखनऊ, उत्तर प्रदेश,
भारत (२२६०२२)
© Divya Prakash Mishra