...

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हमारी अधूरी इच्छाएं
बच्चों की परवरिश को लेकर
रहे ऊंचे सपने
सीमित आमदनी और सीमित छुट्टी में
पैसों की तंगी के साथ साथ
समय का आभाव
हमेशा बना रहा...
सोचती थी
बुनियादी जरूरतों से कुछ बचे
तो मां को चार धाम तीर्थ कराऊंगी
हवाई जहाज से...
और फिर अचानक
एक दिन
मां चली गई
हम सब को छोड़ कर ...
अब जबकि हम सब के जीवन में
सबकुछ सही हो रहा है
तो मां नही है ...
अपने बच्चो की समृद्धि देख
खुश होने के लिए...
पितृ पक्ष, श्राद्ध ,तर्पण
मृत्यु के बाद की बातें मैं नही जानती
बस जानती हूं
समय के अभाव में
रह गई कुछ हमारी अधूरी इच्छाएं।