...

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इनायत
नायाब कोई आयत बन जाऊँगा
बेजान पड़ा था पत्थरों की तरहा
तिश्नगी से तराशा जा रहा हूँ मैं
मुझे कोई गढ़ने लगा है।

क्यों है ये शोर ये फड़फड़ाहट
गर्द भरे पन्नों के पलटने का
ग़ुमनाम क़िस्सों की किताब मैं
मुझे कोई पढ़ने लगा है।

चरमराते सूखे पत्तों की आवाज़
कुछ संभले क़दमों की आहट
गूंजती है राह-ए-दिल की जानिब
मेरी ओर कोई बढ़ने लगा है।

पुर सुकून, राहत बक्श है समां
अरसा सुलगे हालात की तपिश में
ये रब की इनायत है मुझ पर
साया उसका मुझ पर पड़ने लगा है।


© IdioticRhymer