...

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थोड़ा उलझे हैं तो क्या
समंदर सा संसार जिसमे कस्ती मेरी बह चली
न साथी न पटवार बस बहती चली
थोड़ा सहारा की चाहत मझधार में हुई
लेकिन मन न माना तो डर से घबराहट हुई
थोड़ा उलझे हैं तो क्या सुलग जायेंगे
अकेले ही सही नया पर लगायेंगे
अभी एक बच्चा अंदर हमें टटोल रहा है
हिम्मत न हारो ये बोल रहा है
तुम कर सकती हो बस निर्भरता छोड़ दो
अकेले आईं थी अकेले जाना है
बस चहचहा उन्मुक्त पंक्षी की तरह
उड़ कर पार नीला आकाश जरा
रूह की सुन बाकी सब कर अनसुना
चल अब लंबा है सफर कुछ गुनगुना तू जरा