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प्रेम की भीख
क्षितिज के पार,
रहा धरा का आँचल नभ संवार।
कल्पना अनूठी,
लगती परियों की रानी हो रूठी।
अनोखा मिलन,
परंपरावादी सोच का था चलन।
"नीर"का झरना,
देख लगायें "पलकें" शामियाना।
उड़ाये खिल्ली,
बादलों की पारदर्शक "झिल्ली"।
यथार्थ से"दूर",
करे कुदरत जिसको बस मंज़ूर।
व्यथित करता,
क्षणभर हृदय को फ़िर हर्षाता।
दोनों दें सीख,
"गिल"मत मांगो प्रेम की भीख।
© Navneet Gill
रहा धरा का आँचल नभ संवार।
कल्पना अनूठी,
लगती परियों की रानी हो रूठी।
अनोखा मिलन,
परंपरावादी सोच का था चलन।
"नीर"का झरना,
देख लगायें "पलकें" शामियाना।
उड़ाये खिल्ली,
बादलों की पारदर्शक "झिल्ली"।
यथार्थ से"दूर",
करे कुदरत जिसको बस मंज़ूर।
व्यथित करता,
क्षणभर हृदय को फ़िर हर्षाता।
दोनों दें सीख,
"गिल"मत मांगो प्रेम की भीख।
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