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तलाश सकून की
हसरतों के समंदर में
सकून की तलाश में हैं
कैसे बताएं सहरा
किस गहरी प्यास में हैं...
कितना भी सुलगा लो
गीली लकड़ियों सी
धुआं बन कर रह गई है
ये आग दिल की...
नासमझ थे हम
तराज़ू में तोल बैठे हैं
अपनी वफ़ा को
बेईमान दुनिया के पलड़े में...
वक्त के साथ साथ
करते करते चहल कदमी
टूट जाती है समय बेसमय
ये मोतियों की लड़ी ...
थक गए हैं पांव
अब इस सफर में
पता नहीं कब थमेगी
ये तलाश सकून की।
© Geeta Dhulia
सकून की तलाश में हैं
कैसे बताएं सहरा
किस गहरी प्यास में हैं...
कितना भी सुलगा लो
गीली लकड़ियों सी
धुआं बन कर रह गई है
ये आग दिल की...
नासमझ थे हम
तराज़ू में तोल बैठे हैं
अपनी वफ़ा को
बेईमान दुनिया के पलड़े में...
वक्त के साथ साथ
करते करते चहल कदमी
टूट जाती है समय बेसमय
ये मोतियों की लड़ी ...
थक गए हैं पांव
अब इस सफर में
पता नहीं कब थमेगी
ये तलाश सकून की।
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