...

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पंखहीन इस निर्जन वन में|
पंखहीन इस निर्जन वन में|
वायुहीन अज्ञात गगन में,
शक्तिहीन इस सुन्दर तन में |
मुक्तिहीन इस अविरत मन में |
सहज, सरलता से समझता,
जीवन निर्झर बहता जाता,
पंखहीन इस निर्जन वन में |


चहक मधुर थी , झलक सुद्रढ़ थी |
श्रम का प्रतिबन्ध लिए,
सख्त वक़्त की गति को रोकता|
हर दम बस हरा ही दिखता,
घबराता आसू को पलकों में सोखता|
पंखहीन इस निर्जन वन में|

कभी कभी कही कही किसी की आहट सी आती थी|
जगत में जन्मा नहीं में, जीने की चाहत सी आती थी|
रंग का अर्थ तो निरर्थक है,
हरकोई किसी की आस में चातक है|
पंखहीन इस निर्जन वन में |

तेरे चिन्ह मेरी राह गर बनाना चाहे,
मै मंजिल क्यू ना पाऊ चाहे कितनी कठिन हो राहे मै तो बस कहता जाता ,
कौन यहाँ मुझको है भाता|
जीवन निर्झर बहता जाता,

पंखहीन इस निर्जन वन में|

© SandeshAnkita