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शीर्षक - कब समझेगा आत्म।
शीर्षक - कब समझेगा आत्म।
शरीर किसका साथी रहा,
माया किसके संग चला।
रह गया केवल राख बन,
यहाँ जो पाया जो मिला।
चाहत की अंधी दौड़ में,
वस्तु पाने निकला खोखला।
निकल गई उम्र तमाम,
फ़िर भी भरा नहीं मन का झोला।
किया न भजन कभी,
किया न कभी श्रीमनहरि।
सार समझा नहीं जीवन का,
क्या जाने तू शक्ति ईश्वरी।
पाप कमाया जीवन भर,
कमाया न धर्म का ध ज़रा।
सोच मुक्ति कैसे पायेगा,
जब प्राण लेगा शरीर छुड़ा।
अंत मिलेगा अंत में,
जा पुहुँचेगा उस यम द्वार,
कब समझेगा आत्म,
जब सबकुछ जायेगा हार।
©Musickingrk
शरीर किसका साथी रहा,
माया किसके संग चला।
रह गया केवल राख बन,
यहाँ जो पाया जो मिला।
चाहत की अंधी दौड़ में,
वस्तु पाने निकला खोखला।
निकल गई उम्र तमाम,
फ़िर भी भरा नहीं मन का झोला।
किया न भजन कभी,
किया न कभी श्रीमनहरि।
सार समझा नहीं जीवन का,
क्या जाने तू शक्ति ईश्वरी।
पाप कमाया जीवन भर,
कमाया न धर्म का ध ज़रा।
सोच मुक्ति कैसे पायेगा,
जब प्राण लेगा शरीर छुड़ा।
अंत मिलेगा अंत में,
जा पुहुँचेगा उस यम द्वार,
कब समझेगा आत्म,
जब सबकुछ जायेगा हार।
©Musickingrk
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