...

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भिखारी...!!!
poem by... ROHIT....

एक भिखारी दुखियारा भीख मांगता
भूखा प्यासा फिरता
मारा मारा...!!!
अबे काम क्यो नही करता हट.. हट..
कोई चिल्लाता
कोई मन भर भिक दे जाता
पर भिखारी भीक कहीं नही पाता..!!

भिखारी मंदिर के बाहर गया
भक्तो को राम राम भुलाया
किसी ने एक पैसा न थामया
भगवान भी काम न आया...!!!

मस्झिज पहुंचा
आने जाने वालों को दुआ सलाम बजाया
किसी ने कोड़ी भी नही दी
मुसीबत में अल्लाह भी काम न आया..

भिखारी बदवाश
कोई न बची आस
जान लेवा हो गई भूख और प्यास
जाते जाते ये भी आजमा लू
गुरुद्वारे पर सीस झुका लू
सरदार जी भूखा प्यासा हूं
तो क्या मेरी गलती हैं
भिखारी को लगा किस्मत बडी दूर हैं....!!!

आगे बड़ा...
तभी देशी ठेके से निकलता एक शराबी नजर आया
भिखारी ने फिर अपना आलाप दोहराया
बाबू भूखे को खाना मिल जाय
तेरी जोड़ी बनी रहें तू ऊंचा रूतबा पाए
अरे भाई क्या चाइए
बाबू 2 रुपया
भूखे पेट का सवाल है
शराबी जेब में हाथ डाल बुदबुदाया
अरे तू तो बडा बेहाल हैं
बाबू 2रुपया
अरे दो क्या सौ ले
बाबू बस खाने को दो ही काफ़ी है
अरे ले सौ ले और पेट भर के खा ले
बच जाय तो ठहरे की चुस्की लगा ले
भिकारी को मानो असली भगवन मिल गया हो

भिखारी फिर धीरे धीरे घर की ओर निकला
रास्ते मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा पड़ता है

भिकारी गुदगुदाया
वाह re भगवान
मांगने वाले से इधर उधर छुपता रहता हैं
रहता कहीं और है
मिलता कही और है
आज अगर ठेके पर नहीं जाता तो
में मर ही जाता.....!!!!
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