...

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गुनगुनाती सुबह
जिंदगी में कभी कभी बहुत खुबसूरत लम्हे आते हैं जो यादें बनकर जिंदगी में सिमट जाते हैं,
मुझे भी एक मौका कन्याकुमारी जाने का मिला,
विवेकानंद आश्रम में हम लोग दो दिन रहे वहां की प्रकृति सुंदरता देख कर मेरा मन तो वापस आने को भी नहीं कर रहा था पर यह जो जिंदगी है ज़िम्मेदारियां है
एक ही जगह सिमट कर रह जाती है
हम चाह कर भी अपने मन की नहीं कर पाते हैं,
सुबह 5:00 बजे उठकर हमें यह नजारा देखना था उगते सूरज की प्रतीक्षा कर रही थी,
कुछ इसी तरह जिस तरह यह तस्वीर
बहुत ही प्यारा वे दृश्य था,
उगते सूरज को जिंदगी में पहली बार मैंने देखा,
मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा
काश वह दिन रोज-रोज आए
मैं प्रकृति को इसी तरह निहारु
पता नहीं क्यों प्रकृति से बहुत ही प्यार है
पशु पक्षी लहराते हुए खेत खलियान
बड़े अच्छे लगते हैं,
यह नदियां यह रैना
और यह गुनगुनाती सुबह ।