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जिसे चाहा
न कभी कहा
न कभी कह पाएंगे
इतने दिन तो रह गए
खुद में ही सब समेटे
जाने दिन कितने और
हम सलामत रह पाएंगे
एक तरफा था मेरा इश्क़
कि उन्हें भी हुआ था
न जानने की कभी इच्छा रखी
न कभी जान पाएंगे
कि अनजान सी फिक्र
घेर गई मन को
जवाब ना हो या हां ही सही
सुनकर पैर हमारे
क्या ज़मी पर संभल पाएंगे
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© Rishali