...

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नाम
यात्रा का डंका
बजाया विजय ने
और चल पड़ा पुरुषार्थ के पथ पर।
अनिरुद्ध , अडिग अपने गन्तव्य पर
पहुंचने के प्रयास में।
अविरल सरिता को पार कर
गगन को चूमते भवन के शिखर पर
अरण्य , अनन्या के गर्भ को भेद कर
भानु की लालिमा से तप कर
मयंक की शीतल किरणो को ओढ़ कर
प्रभु का मनन व स्तुति कर
बढ़ता चला
बढ़ता चला ।
( आशा है सम्पूर्ण कायनात जुट जाएगी सहायता में ).