...

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एक सच
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
अनगिनत कहानियाँ अधूरी हैं|

राह बिके जो जिल्लत हैं,
जो खरीद लें वो आदमी बड़ा,
यूं बिकते जिस्म देख कर,
क्यों है तु चुप खड़ा|

किसी ने तो भरोसा किया था,
किसी ने तो सपने देखे थे,
कैसे ना काम्पे हाथ तुम्हारे,
जब पहली बार पैसे फेंके थे,
क्यों नहीं हाथ को रोक दिया,
क्यों उस मासूम को नोच दिया,
क्यों लाज शर्म को बेच कर,
उसे उस दलदल में जोंक दिया|

ख़ुद की आत्मा बेच कर,
अब उसे बिकाऊ कहते हो,
किसी को ज़िंदा मारके,
ख़ुद ख़ुशी से रहते हो,
अब बिके गोश्त बाज़ार में,
या आये ख़बर अखबार में,
तो हाथ जेब में रख कर,
शब्द थूक देना पायदान में||





© VanS