...

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सुसंस्कृत स्पर्श
लगे क्षीण,मूक,बधिर,
करे सच्चा "स्पर्श" ऐसा असर।

आत्मा होती "झंकृत",
लगे मधुर तान जैसा सुसंस्कृत।

तृप्त हो हृदय प्यासा,
बढ़ती जीने की उमंग पिकासा।

भांति मोर नाच जाये,
घंटियों की मानिद ध्वनि हर्षाये।

प्रेयसी या फ़िर माता,
सब भाये बाबुल,पति,"भ्राता"।

है इतनी केवल अर्ज़,
न,छूने में "व्यर्थ" की क़ोई गर्ज़।

लगे शीतल जलतरंग,
"गिल" कहें जज़्बात बजा मृदंग।

© Navneet Gill