...

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शाम एक कविता है...!!
शाम एक कविता है,
गगन पर सिंदूरी कलश छलकाती हुई...!

सजाकर धरा के मुख पर
रक्तिम सी आभा,
दूर क्षितिज पर सूर्य - धरा का
मिलन दर्शाती हुई...!

समेटकर स्वयं में
खग विहग वृंद का कलशोर,
खुशी संगीतमय ध्वनि की
डेरों पर जाने की दर्शाती हुई...!

दूर उड़ती है कहीं गोधन के पैरों की रज,
गोधूलि बेला पर... हांँ यही शाम
नाद घंटियों का मधुर पावन
गुज़रती है सुनाती हुई...!

सजाकर स्वप्न कोमल रंग बिरंगी से,
लिए चलती अपने स्नेहाँचल में हमें
प्यार भरे बिछौनों पर...
मीठी थपकियांँ देकर सुलाती हुई...!
© "मनु"