...

3 views

ख़ुदगर्जी की इस भीड़ में
ख़ुदगर्जी की इस भीड़ में शामिल हो गए हम भी, शतरंज के इस खेल में आज माहिर हो गए हम भी।

बोल रहे है काग़ज़ें आज, मेहनत की क़ीमत क्या है," वक़्त की सच्चाई से आज वाकिफ़ हो गए हम भी।

क़िस्मत की तहरीर बदली कब है,क़लम उनके हाथ है,
आज आसमां से मिलाकर नज़रे ख़ाली हो गए हम भी।

किस हक़ से मांगू तुझसे हिसाब ...ऐ नादान ज़िन्दगी,
जब कतरा कतरा तुझे बेहिसाब ख़र्च किये है हम भी।

मेरे अल्फ़ाज़ों की गूंज से डगमगाएगी नींव ज़मीर की, है क़ाबिलियत 'सोनी' में कितनी, अब परखेंगे हम भी।

© सोनी