...

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गलतफहमियां रिश्तों को इस तरह खा जाती है ...
आईने मुलाकात के जब शिकार देर की धूल
के होने लगे....
राब्ते दर्मियां के सुनो जब कम से कमतर
होने लगे....
सफ़ाई अश्कों की भी जब सुनो बेमानी सी
लगने लगे...
मिठास रिश्तों की जिस घड़ी कड़वाहट ने
बदलने लगे ...
दरारें दर्मियाँ ली जब खाई में बदलने लगे ...
बातें औरों की फिर दोनो ही तरफ़ सही
लगने लगे ....
सुनो जब ज़िंदगी की ज़मीन इस तरह ज़लज़ला
आने लगे....
अपना सब कुछ छूट छूट कर दूर बहुत दूर
जाने लगे...
तो बहुत ज़रूरी है के जायज़ा ए नफ्स इंसान
अपना लेने लगे ....
जो भी हुई है गलत फहमिया उनको कम
करने लगे ...
कुछ नही हासिल होगा यूं जुदा होकर बिखर
जाने से यहां...
ज़िंदगी आसान हो जाती है मिलजुल कर गुज़ार
देने से यहां .....

© sydakhtrr