...

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आज क्यू तपिश
आज क्यू तपिश मे आने लगा गगन ।
नील , गौर , व्योमिल सा हो गया बदन ।

सूरतो में जिसकी लालिमा सी भर गई
अंधेरी नगरियो में , रौशनी सी आ गई ।
तुम मिले तो सांसों में भी सांस आ गई ।
जैसे खाली खेत मे बहार आ गई ।
चाहतो की आड मै छिपा है मेरा मन ।

नील ,गौर,,,।।

चंदा के रथ पे चांदनी सवार हो गई ।
होके मस्त मस्त ये सवाल कर गई ।
कैसे हुए निराश क्या बात हो गई ।
कैसे कहकहो में कमी सी है आ गई ।
धूमिल से कैसे हो गए है तेरे सब वचन ।

नील, गौर, व्योमिल सा हो गया बदन ।

चर्चाओं मे आ गई तेरी कहानियां।
कुछ इस तरह से टूटी दिलों कि आशिया ।
सूद खोर दिल तेरा ,मेरा दिवालिया ।
क्यू ब्याज भी भरने का ,किया नहीं जतन।
नील , गौर, व्योमिल सा हो गया बदन।

कहकहों,,, तारो का झुरमट्ट समूह ,,
© Sarthak writings