...

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वो तो सो गया ख़ाक में ख़ाक हो कर
वो जो बन गई जाकर लहद की ज़ीनत...
ख़ाक में ख़ाक हुई मिलकर मेरी अमानत...

रात भर ज़हन को झंझोड़ा उसनेआ आ कर ...
जैसे दस्तक देती हो उसकी रूह आ आ कर...

सवाल आंखो में भीग गए ना जाने कितने आ आ कर..
शक्ल उसकी वो लपटे थी खु़द पर जानी पहचानी मुस्कुराहट...

क्या कहूं किस तरह से गुज़ारी हमने वो तल्ख़ रात खु़द को तड़पाकर...
क़ब्र से करूंगा सुन तेरी शिकायत तेरे ही पास आ कर ...

इस क़दर चैन से तू सोया ख़ाक में ख़ुद को मिलाकर ..
हम को यूं छोड़ दिया हमको यहां इस तरह से रुला कर ...

लिख दिया हर एक एहसास को आज लहू में अपने भिगोकर...
चढ़ाया अश्को का नज़राना अख़्तर ने आज खुद को खो कर...

© sydakhtrr