...

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वो मेरे अंदर से नहीं गया!!
कितने ही लोग आये,
कितने ही लोग गए,
बस वो एक ही शख्स,
मेरे अंदर से नहीं गया।।

मेरी शख्सियत में अक्सर उसका अक्स देखते हैं लोग,
मैं भी तब तक ही ज़िंदा रहा जब तक वो मेरे लिए मर नहीं गया।।

उस मुसाफिर को रस्ता ऐसा भाया,
फिर वो उम्र भर सफ़र में ही रहा...घर नहीं गया।।

मेरे इस हाल पर आपकी राय क्या है!!
उसे खो तो दिया मगर अब भी उसे खोने का डर नहीं गया।।

सुना है अब भी उसके मोहल्ले में बीमारों की भीड़ लगती है,
लगता है मुस्कुरा के दर्द कम करने का उसका हुनर नहीं गया।।

छोड़ो सब ये ताल्लुक ओ वफा की बातें,
रिश्ता टूटने भर से आजतक कोई मर नहीं गया।।

ये जो तुम दुश्मनी और जंग की बातें करते हो,
लगता है तुम्हारा कोई अपना कभी जंग पर नहीं गया।।

कभी कभी यूँ भी वफ़ा को आज़माया है हमने,
पिंजरा तब तक खुला ही रखा जब तक परिंदा उड़ नहीं गया।।

वो जो छोड़ गया मुझको इसमें ख़ता क्या उसकी,
मैं ख़ुद उसका तबतक नहीं हुआ जब तक वो मुझे छोड़कर नहीं गया।।