...

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सपना
खिलता हुआ गुलाब हो तुम
जिसे काँटों की कोई फिक्र नही
हर मौसम खिलखिलाती हो तुम
किसी गम का चेहरे पर ज़िक्र नहीं

घर की सबसे नन्ही हो तुम
व्यहवार मगर बड़ों-सा है
"माँ" की भी बन जाती हो माँ
संस्कार मगर जड़ों में हैं

ग़मों से परे मगर नही हो तुम
हर गम से लेकिन लड़ती हो
अपनी प्यारी मुसकान से तुम
हर इक दर्द के सामने अड़ती हो

रूप से सुन्दर बेहद हो तुम
मन से और भी खूबसूरत हो
लगती वैसे बहुत सख्त हो तुम
सच में कोमल हृदया नारियल-सी हो

मैं बिल्कुल नही जानता, कौन हो तुम
मेरे लिए ईश्वर का दैव्य उपहार हो
सदा मुस्काती रहती, खुशमिजाज़ हो तुम
तुम 'सपना' हो, अनंत आसमान हो....

© rbdilkibaat