...

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व्यवधान
विरह के प्रणय पथ पर

मिलने के असंख्य वचन..

अब मन में मिथ्या लगते है ।

देखने के त्वरित प्रयत्न..

अब नेत्रों में खंजर लगते है ।

नित्य बहते आंसू का स्वाद..

अब खारा समुद्र लगता है ।

कहने के अति मीठे शब्द..

अब जिह्वा पर विष लगते है ।

प्रेम में मिलने की उत्सुकता..

अब हृदय में व्यवधान लगती है ।

सान्निध्य से उभरता रिश्ता...

अब भीतर से ग्रसित लगता है ।

व्यथा से प्रवाहित शरीर...

अब अड़चनों का बोझ लगता है ।

© -© Shekhar Kharadi
तिथि- २७/५/२०२२, मार्च