![...](https://api.writco.in/assets/images/post/user/poem/297220427102934206.webp)
32 views
व्यवधान
विरह के प्रणय पथ पर
मिलने के असंख्य वचन..
अब मन में मिथ्या लगते है ।
देखने के त्वरित प्रयत्न..
अब नेत्रों में खंजर लगते है ।
नित्य बहते आंसू का स्वाद..
अब खारा समुद्र लगता है ।
कहने के अति मीठे शब्द..
अब जिह्वा पर विष लगते है ।
प्रेम में मिलने की उत्सुकता..
अब हृदय में व्यवधान लगती है ।
सान्निध्य से उभरता रिश्ता...
अब भीतर से ग्रसित लगता है ।
व्यथा से प्रवाहित शरीर...
अब अड़चनों का बोझ लगता है ।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि- २७/५/२०२२, मार्च
मिलने के असंख्य वचन..
अब मन में मिथ्या लगते है ।
देखने के त्वरित प्रयत्न..
अब नेत्रों में खंजर लगते है ।
नित्य बहते आंसू का स्वाद..
अब खारा समुद्र लगता है ।
कहने के अति मीठे शब्द..
अब जिह्वा पर विष लगते है ।
प्रेम में मिलने की उत्सुकता..
अब हृदय में व्यवधान लगती है ।
सान्निध्य से उभरता रिश्ता...
अब भीतर से ग्रसित लगता है ।
व्यथा से प्रवाहित शरीर...
अब अड़चनों का बोझ लगता है ।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि- २७/५/२०२२, मार्च
Related Stories
52 Likes
30
Comments
52 Likes
30
Comments