...

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मेहमान जज़्बात
बंजारे से जज़्बात,
हैं अमूल्य ईश्वरीय सौग़ात।
कभी थकन से चूर,
ओढ़े "कफ़न" खोंये चेहरे का नूर।

कहीं लबरेज़ कांति,
करते भंग हृदय की "शांति"।
चूडियों संग पायल,
अहसासों को करते मिल घायल।

आत्मसात हैं करायें,
"कठपुतली" बनाकर नचायें।
वक्त बेवक्त नयन नम,
उलझे ज्यादा सुलझे हुए थे कम।

पहेली की तरह लगे,
पकड़े नहीं गये पर हाथों रंगे।
गिरगिट को देते मात,
न,सीधे मुंह करते किसी से बात।

लाचारी साथ मस्ती,
बसायें "अलगाव" की बस्ती।
मिलते न एकसमान,
"गिल" होते चंद क्षण के मेहमान।
© Navneet Gill