...

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कुछ यादें
क्या इतना आसान है भूलना
सालो बीत जाते हैं लेकिन कुछ यादें कभी नहीं ,
ज़िम्मेदारी के बोझ में
दबी हुई ये यादें शायद रोना चाहता है
मानो कोई मुर्झाया हुआ पेड़ का जिंदा रहना
कभी-कभी ऐसा लगता है जैसे मैं कभी आंखें खोलूं ना इस दुनिया को देखु ना
ये जिंदगी जो सता रही है इस्से मैं जियू ही ना
कभी कभी मन इतना उदास हो जाता है
जैसे सालों से रोयी ही नहीं है
कुछ ख्याल को हसीन बनानी के लिए
उसमें छुपी हुई दर्द को पीना पडता हा
सब कहने की बात है लेकिन सच तो यही है
कि यादें कभी नहीं मरतीं नहीं है
कभी-कभी इस अकेले सफर में जीने का एक मकसद तो कभी कभी मर जाने की वो सारी वजह परोश देती है