...

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महबूब की इनायत
जाने अनजाने हम उस
सफ़र में निकल गए
जिसकी कोई मंजिल नहीं

महबूब की इनायत जो हमपे हुई
ना चाहते हुये भी इश्क़
करने की गलती हमसे हो गयी

जब उससे बात होती है
दिल में तरंगें उठने लगते है
सांसे तेज होके धड़कने मचलने लगती हैं

ना जाने किस किस बात पे
दिल मेरा उसे दुआ देता है
मुझे प्यार से रोते को हँसाने वाला

शुकरान मैं उस रब का
करती हूं जिसने हमें मिलाया
उसी में बस गई है अब जान मेरी

दिन रात रहे बस उसी का ख्याल मन में
उसका साथ मुझे सुकून देता है
उसकी बातें आत्मविश्वास से भर देता है

रही कोई उलझन तो मिनटों में वो सुलझा जाता है
उसका साथ है तो मुझे अब कोई गम नही है
अंधेरों से भी मिल रही मुझे अब रोशनी है

उम्र के इस पड़ाव में भी उसके साथ मैं बच्चा बन जाती हूँ
हरकतें बच्चों वाली मैं उसके साथ करती हूं खुल के जीती हुँ मैं उसके साथ हर लम्हे को मैं सुकून भरा महसूस करती हूं