...

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लहरें
ऐसी भी लहेरे थी जो कभी देख न सखी किनारे।
नावे भी कुछ पार लगी बिन नाविक पतवारे।

ऐसे भी आंसू थे जो आँखों तक ना चल पाए।
लब्ब्ज थे कुछ ऐसे दिल से होटो तक ना आ पाए।

ऐसे भी कुछ सपने थे आंख खुलते ही धुल गए।
कुछ ऐसे फूल भी थे जो बिन माली खिल गए।

ऐसे भी बदल थे जो बिन सावन ही बरस गए।
कुछ सावन की दस्तक देकर बिन बरसे ही चले गए।

कुछ ऐसे अपने थे जो अंधेरो की दस्तक पर भाग गए।
ऐसे भी साये थे जो नंगे पाव साथ चले अंधियारों में।

ऐसे भी चिराग थे जो घबराये अंधियारों से।
कुछ जुगनू भी ऐसे मिले जो सूरज बन लड़े अंधियारों से।
© Abhinav Anand