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खोखली दीवारें
कहतीं आ,मुझे संवारें,
मन महल की,खोखली दीवारें।
क्योंकर झेलता "दंश"?
बना मजबूती को अपना अंश।
ले कर तू ऐसी "पुताई",
भांति "दीपोत्सव" जगमगाई।
कृत्रिम रंगों से रख दूरी,
करो "रंगोत्सव" की जी हुजूरी।
उम्मीद के पायदान पर,
हौंसलों की "उड़ान" लेना भर।
बगैर छल बिछाना फर्श,
पहुँचेगा एक दिन जाकर अर्श।
होकर थोड़ी सी मरम्मत,
हो जाये ये घर अटूट सल्तनत।
फिर बैठकर करना राज्य,
"गिल" गुजरे की भूल पराजय।
© Navneet Gill
मन महल की,खोखली दीवारें।
क्योंकर झेलता "दंश"?
बना मजबूती को अपना अंश।
ले कर तू ऐसी "पुताई",
भांति "दीपोत्सव" जगमगाई।
कृत्रिम रंगों से रख दूरी,
करो "रंगोत्सव" की जी हुजूरी।
उम्मीद के पायदान पर,
हौंसलों की "उड़ान" लेना भर।
बगैर छल बिछाना फर्श,
पहुँचेगा एक दिन जाकर अर्श।
होकर थोड़ी सी मरम्मत,
हो जाये ये घर अटूट सल्तनत।
फिर बैठकर करना राज्य,
"गिल" गुजरे की भूल पराजय।
© Navneet Gill
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