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शीर्षक - ये ध्वज कोई आम नहीं।
शीषर्क - ये ध्वज कोई आम नहीं।

मामूली लगता तिरंगा कुछ आँख के अंधो को,
सहना पड़ा बोझ इसका जाने कितने कंधो को।
दिख रहे जो गली चौराहे पे फ़िके तिरंगे सारे,
ग़ौर से देखो दिखेंगे गुरु भगत चूमते फंदों को।

आज़ाद की आज़ादी दिखेगी इसमें तुमको,
इसमें दिखेंगे लाल पाल बाल के लाल लहू।
मंगल की दिखेगी छवि गरजती हुई इसमें,
इसमें दिखेंगी लक्ष्मीबाई लिए अपने आरज़ू।

बूढ़े वीर कुंवर सिंह की दहाड़ दिखेगी,
देखने पर दिखेगा जलियावाला कांड तुम्हें।
सावरकर की दिखेगी काल कोठली,
भगत गुरु सुखदेव के दिखेंगे प्राण तुम्हें।

चारो ओर बस गाँधी के आंदोलन दिखेंगे,
कइयों खुदीराम जैसों की ख़त्म जवानी।
उद्धम सिंह का देश के लिए ज़ुनून दिखेगा,
दिखेंगे इस मिट्टी में जाने दबे कितने सेनानी।

ये ध्वज कोई आम नहीं इसने ली कई कुर्बानी है,
किसी का लाल किसी का सिंदूर किसी की गई जवानी है।
करते रहो नमन इसे देह में जब तक प्राण तुम्हारे,
उतार नहीं सकोगे कर्ज़ जो चढ़ा के गए सेनानी हैं।

©Musickingrk

#SpiritOfIndependence