...

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बचपन
#WritcoPoetryDay

निर्मल शीतल और वो पावन दर्पण ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था...

हँसी ठिठोली करते थक जाया करते थे हम
जो भी आया मुँह में बक जाया करते थे हम
वो घर का अपना छोटा सा आँगन ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था....

खेल-खेल में ही वो सुहानी शाम हुआ करती थी
खिलौनों की दौलत अपने नाम हुआ करती थी
शरारतों से घर में होने वाला वो कँपन ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था....

क्या तो वे दिन थे जब अपने ठाठ हुआ करते थे
दिन भर में नखरे अपने भी साठ हुआ करते थे
माँ के आँचल में मिलने वाला तर्पण ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था....

वे ही तो दिन थे जब अपने त्यौहार हुआ करते थे
रंग उमंगों और पटाखों की बौछार किया करते थे
जीवन का सबसे मधुर वो दर्शन ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था....

निर्मल शीतल और वो पावन दर्पण ही अच्छा था
अब हर दिन है लगता वो बचपन ही अच्छा था...

© random_kahaniyaan

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