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ख़ुशनुमा ए मक़ाम
जो डिगता नहीं क़यामत में, वो आशावादी कहलाता है,
चाहे ग़म का सागर हो, खुशियों की मोती ढूँढ लाता है।
गुज़रे गर कुछ बुरे काल, चेहरे पर शिकन नहीं आती है,
तोड़कर रंजोगम की दीवारें, बस आगे बढ़ता जाता है।
चहुँओर मातम गर पसर गया, एक दिन छट जाता है,
ग़म नहीं बदतर हालात का, स्वत: ही सुधर जाता है।
सम्पूर्ण जगत था परेशान, त्राहि-त्राहि जो मची हुई थी,
रौनकें लौट रही, अब ख़ुशनुमा ये मक़ाम नज़र आता है।
© 🙏🌹 मधुकर 🌹🙏
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