...

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मैं कागज की नाव पे चला...
मैं टूटा कई दफा
मैं बिखरा कई दफा
मैं एक फूल बाग का
मेरे पत्ते गिरे कई दफा

जालीम था यह जमाना
और मैं तजुर्बे मे नया
तोड़ लिए पंखुडी मेरे सारे
लेकीन खुशबू मेरी कोई छीन न सका

पराये भी नाराज मुझसे
अपने भी मुझसे खफा
जो थे सहारा मेरे
वह दुनिया को कह गए अलविदा

था मुझको बाग मे अकेले जीना
और करना था पूरा उनका सपना
लिखा मैने सबकुछ लेकिन
दर्द अपना कभी लिख न सका

देख ज़िन्दगी मेरा हौसला
मैं कागज की नाव पे चला

माना कि समंदर है गहरा
और तैरना मुझको आता नही
लेकिन मेरी बात याद रखना तू
मेरा हौसला आसमाँ से भी ऊंचा


© sabrbaaz