...

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और तुम चल दिए।
क्या खूब तमाशा
केवल लफ्फाजी
मरोङ हर नयनों की आशा
भूल सब जो वे कल ने दिए
अरे तुम तो चल दिए।।
वह स्तन्य
जिसे पाकर हुए तुम मूर्त
वह कुव्वत
जिससे तुम्हारी रही बरक्कत
भूल गए किस किस ने
इस पौधे में जल दिए
अरे तुम तो चल दिए।।
जो हाथ उठे
दुआ मांगते आसमां से
हाथों की उन लकीरों में
चस्पां तुम रहे
विस्मित उन्हें कर
भूल कर इन अरदास को
जिस ने दीप्त मुस्तंबल दिए
अरे तुम तो चल दिए।।
ये पलव
ये चुनरी
सिर का वह बाना
जिससे बन गया
अब और आज तेरा तराना
बना बकुचा
ज़मीर संग ऐसे दफन कर दिए
अरे तुम तो चल दिए।।
✍️राजीव जिया कुमार,
सासाराम,रोहतास,बिहार।





© rajiv kumar