...

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क्या हूँ मैं?
हजारों गम हैं जहां में मगर ढूंढती
है दुनिया जिसे पल भर के लिए
वो पल भर की खुशी हूँ मैं।

तोड़ कर जमाने की सारी रस्में कस्मे
उड़ चली जो आसमां की ओर
वो नन्ही सी तितली हूँ मैं।

जिसकी मंजिल दूर कहीं है
जिस पर किसी का जोर नहीं है
एक बेफिक्र बहती नदी हूँ मैं

पतझड़ के मौसम में उजड़े
किसी बाग की बेवक्त
खिली एक सुंदर कली हूँ मैं

जो समेटती है खुद में इश्क़ के नगमे,
गम की बातें और पुरानी यादें
कवि की लिखी शायरी हूँ मैं।

चंद उम्मीद और ख्वाहिशें लिए
इधर उधर भटकते
मुसाफ़िर की सफर भरी जिंदगी हूँ मैं।

© ranjana
28.9.23