...

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पर अब फ़र्क नहीं पड़ता...
ना चाहत है
ना प्यार है,
बस कुछ सांसे है
जो उधार है.....!
पर अब फर्क़ नहीं पड़ता...

था जो बेइंतहा है
बेशुमार है,
पर ऐसा लगता है,
शायद
मुझे ही उससे प्यार है!
पर अब फर्क़ नहीं पड़ता...

तू रब है
तू ही संसार है,
माँगा था साथ जीना
मगर मेरी कब्र तैयार है!
पर अब फ़र्क नहीं पड़ता...

शिकायत है,
शिकायत ही रहेगी,
कोई था
यादों में इक दिन आँखे
तुम्हारी भी बहेगी!
पर अब फ़र्क नहीं पड़ता...

चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet143