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बच्चों के हाथों से न छीनों किताबें
हाल मीठे फलों का मत पूछो
रात दिन चाकुओं में रहते हैं।।
गम दौड़ते हैं दिन रात साथ
खुशी के पांव ही कांटो से बीने रहते हैं।।
जिंदगी क्या है उन दरख़्तों से पूछो
कुल्हाड़ियों के हत्थे जिनकी टहनियों से बने रहते हैं।।
बच्चों के हाथों से न छीनों किताबें
फूल टहनी से टूट कर कहां खिले रहते हैं।।
© मनोज कुमार
रात दिन चाकुओं में रहते हैं।।
गम दौड़ते हैं दिन रात साथ
खुशी के पांव ही कांटो से बीने रहते हैं।।
जिंदगी क्या है उन दरख़्तों से पूछो
कुल्हाड़ियों के हत्थे जिनकी टहनियों से बने रहते हैं।।
बच्चों के हाथों से न छीनों किताबें
फूल टहनी से टूट कर कहां खिले रहते हैं।।
© मनोज कुमार
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