...

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क़ायनात की जन्मदात्री
नख से शिख करतीं श्रृंगार,
हों फ़िर भी एकांकीपन का शिकार।

हिना के रंगों से रंगोली तक,
सजे,सजायें,महकायें देख न है शक।

कभी प्रेयसी,कभी माँ बनके,
निभाये "रिश्ते "फक़त अपने बनके।

बाहर से ले करके घर आँगन,
अलौकिकता से भरीं करें हर्षित मन।

हो शायद जीवन रसविहीन,
करें न,अगर नातों की तुरपाई महीन।

हैं "सुगंधित"लगें सब मौसम,
भले रहते हों,इनके "नयन" फ़िर नम।

"नारी"से है ये सारी क़ायनात,
करो मत इसके साथ " विश्वासघात"।

अबला न है देवी समझो इंसान,
"गिल"खोने न दो उसे अपनी पहचान।

© Navneet Gill