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आजमाते हो तुम 🍁🍁🍁
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क्यों बार बार मेरा सब्र, इस तरह से आजमाते हो तुम
जब चले जाते हो तो क्यों फिर लौट कर आते हो तुम

वो जो चला गया है,अब नई बस्ती बसा रहा होगा कहीं
उसके ख्यालों से क्यों अब अपना जहन जलाते हो तुम

सब मान गए हैं बस तेरा मानना बाकी है अभी
जाने क्यों आज भी इकरार से कतराते हो तुम

लगता है, कोई जख्म गहरा दे गया है फिर से तुम्हें
शाम ढले आज कल कुछ जायदा मुस्कुराते हो तुम

ना जाने कितने इंतिसाबों को निगल गई है ये
जिस अंधेरे को अपने घर की रौशनी बताते हो तुम

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© char0302
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