...

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दूर
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
अपनी मंजिल से भटक रहा कोई।

समंदर के तलाश में बेकरार है,
पंछियों के पंखों पर उड़ान भर है;
अजनबी जगहों की तलाश में निकला है,
अपनी राहों में खो रहा कोई।

खुली आसमान में उड़ता हुआ शीशा,
जीवन की नई दुनिया का जीवन दीशा;
मुश्किलों का सामना कर रहा कोई,
अपनी पहचान बना रहा कोई।

दूर फिरंगी बन कर घूम रहा हो तू,
पर अपनी मंजिल का मत भूल जा कभी;
जीवन की इस रेस में धीरज रखना होगा,
खुद को खोने से पहले खुदा से मिलना होगा।

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