...

6 views

ज़मीन की गाथा
मैं चली,तुम चले ही नहीं,
रह गईं बातें अनसुनी अनकहीं।

खामोशियों का काफ़िला,
करे छिन्न भिन्न मजबूत घोंसला।

"रहगुजर" के हंसीं वायदे,
मगर बदले, वक्त ने सभी कायदे।

रहे उलझे बस सही गलत,
चंद लम्हात ही थे दूर बस फक़त।

लगा मदमस्त सा छलावा,
हकीक़तों से दूर, महज़ दिखावा।

तुम थे,हम कहाँ खो गये?
शिकवे शिकायतों संग चल दिये।

काश होता ज़रा सा इल्म,
ढूंढते नहीं ,फिर कभी भी मरहम।

आज कही मन की व्यथा,
"गिल"रोये नभ सुन धरा की गाथा।

© Navneet Gill