...

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दरमियाँ.....
ना जाने क्या है हम दोनों के दरमियाँ
क्यों मेरा दिल इतना भरोसा करता है..
पता नहीं क्या है किस्मत में लिखा,
थाम कर साथ कलम का आज ...
मैंने एक हमदम ,एक हमनवा ख़ास पाया है...!

ना जाने क्या है हम दोनों के दरमियाँ
क्यों ये रिश्ता इतना अपना सा लगता है..
इंतज़ार नहीं मुझे कल के सवेरे की ,
रिश्ता एक मुझे रात के साथ भी निभानी है...
मुझे ज़िंदगी को इस आज के संग ही जीना है..!

ना जाने क्या है हम दोनों के दरमियाँ
कैसे मीलों दूर से हर एहसास दिलों के जुड़ जाते हैं
कहें ना कहें उसे लफ़्ज़ों से लब ये,
दिल के एहसास लफ़्ज़ों के मोहताज़ नहीं होते हैं..
शायद इसलिए दूर से भी ,
ये दिल रिश्ता नज़दीकियों का निभा जाता है..!

जयश्री ✍🏻