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महाराणा प्रताप
मेवाड़ का राणा वो हल्दीघाटी का शेर था,
स्वाभिमानी प्रताप का अधीनता से बेर था।

देख पराक्रम वीर का वो अकबर भी कांपा था,
था वो चेतक, प्रताप का जिसने नाला छलांग मे नापा था।

तृण रोट खाई उसने शाक भी साथ में फीका था,
रणबांकुरा प्रताप वो आदिवासियों का 'कीका' था।

कैसे हारे वो किसी से आत्मविश्वास जिसकी जीत हो,
राष्ट्रभक्ति भरी रोम रोम में स्वाधीनता जिसकी की रीत हो।

एकलिंग का राणा वो मेवाड़ की शान था,
मुगल सत्ता भी थर्रा गई ऐसा प्रताप महान था।


चेतन घणावत स.मा.
साखी साहित्यिक मंच, राजस्थान
© Mchet043