...

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ज्ञान के चश्मे
चरणों की धूल लगे चंदन,
आ,करें मिलकर 'अभिनंदन'।

दें जीवन बस मात-पिता,
'गुरु'सिखाये चलने का रास्ता।

ज्ञानरूपी बहते हुए चश्मे,
सुनाये प्रगति के नये नये नगमे।

छड़ी,चश्मा और साइकिल,
दें सीख हरकदम और हरपल।

गुरुकुल से नव-पाठशाला,
घनिष्ठ मित्र ब्लैक बोर्ड काला।

छिपे हुए आज भी 'राज़'।
भले बदले ज़माने के 'अंदाज़'।

युगों से देखो है 'निर्माता",
'गिल' शिक्षक भी है विधाता।

© Navneet Gill