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शीर्षक - एक सितम।
शीर्षक - एक सितम।

हर दिन ख़ुदपे एक सितम कर रहा हूँ।
याद में डूब आँखों को नम कर रहा हूँ।
हर दिन रूह से बुरे से बुरा बर्ताव मेरा,
मैं ख़ुदको वाहियात ज़िस्म कर रहा हूँ।

अपनी हरकतों से रोज एक नया दर्द,
ज़रा भी नहीं ख़ुदपे रहम कर रहा हूँ।
कुरेद-कुरेद दिन-ब-दिन ज़ख्मो को,
ताज़ा हर ज़ख़्म का जख़्म कर रहा हूँ।

बंद कमरा रात जागना दिन अँधेरा,
ख़ुदके ख़िलाफ़ सारे क़दम कर रहा हूँ।
दुआँ नहीं नहीं कोई चाहत दिल में,
बस सोच की गहराई में चिंतन कर रहा हूँ।

लेकर ख़ाक ख़ाक भरी ज़िंदगी की,
ख़ाली दिल और अपना ज़हन कर रहा हूँ।
शौक़ को चढ़ा भेंट दर्दों की गोद में,
मैं हर दिन गीला अपने पैरहन कर रहा हूँ।

मायूसी के घेरे में हमेशा बैठकर मैं,
ख़ुदके लिए तैयार कफ़न कर रहा हूँ।
ग़ैर नहीं होंगे मेरी मौत का कारण,
मुझे मैं ही धीरे-धीरे ख़तम कर रहा हूँ।

©Musickingrk