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❤ स्त्री ❤
❤स्त्री❤
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' स्त्री ' से कभी कोई भाव
तुम गहरा ना रखना..
गर रखना कोई तुम भाव गहरा ,
तो शीशे सा साफ़,
अपना चरित्र रखना..!

ना मिलना उसके पास जा कर..
ना अपनी हाथों से उसे स्पर्श करना..
छु सको तो, छु लेना उसके मन को तुम,
उसके तन को छूने की,
नापाक कोशिश ना करना..!

ना कहना, ना जताना ये कह कर तुम..
की ये मोहब्बत है मेरी..
तुम इसे कहीं कुछ और ना समझना ..
अपनी इरादों से ज़रा मिल लेना पहले तुम,
फ़िर मोहब्बत से मिल कर तुम वाक़िफ़ होना..!

मोहब्बत ..मोहब्बत .. कह कर..
अपनी ज़ुबाँ को तुम ज्यादा थकने ना देना..
जिस दिन दिल को मोहब्बत छु जायेगी
तुम उस पल को अपना ज़िंदगी लिखना..!

ना कर मोहब्बत का नाम तु बदनाम यूँ ही..
तुम अपनी ज़ुबाँ से कोई गुनाह ना करना...
कर सको जो किसी की इबादत तुम..
उस इबादत का नाम तुम ' मोहब्बत ' रखना..!
जयश्री✍️

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