...

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मैं आजाद ही ठीक हू 🙋
हा... मैं हूँ गुस्से वाली,
थोड़ी नादान भी हूँ.
समझती हूँ खुद को अनमोल,
पर शायद ऐसी नहीं हूँ.
मेरे भी जज्बात हैं,
मेरी भी उम्मीदे हैं .
मेरे भी हौसले हैं,
मेरी भी उडान है.
कागज की लकीरो कि उन बन्दिशो मे मै क्यू बन्द रहू ,
मैं आजाद उड़ती हुइ ही ठीक हू...
थोड़ी सी ज़िद है मेरी,
जो सोचती हू कि पुरी हो जाए.
कुछ ख्वाहिशे भी है,
जो कही दब ना जाये.
बिना वजह कही शोर मचाउ,
ये फितरत नहीं है मेरी..
और कोइ घर की चार दिवारी में कैद करदे.
ये मै चाहती नहीं..
क्युकि काजग की लकीरो कि उन बन्दिशो मे मै क्यू बन्द रहू..
मैं आजाद उड़ती हुइ ही ठीक हू ..

-Pragya 💕