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मन की व्यथा - 2
कभी - कभी चलते - चलते, यों ही रुक जाता हूँ!
प्रश्न उठे जो मन में, उनके उत्तर पाने के लिए,
अपने अतित में ही डूब जाता हूँ!
मायाजाल में डूबा मैं, अंधेरों में ही खो जाता हूँ,
न कल का पत्ता न आज का, फ़िर भी आगे बढ़ता जाता हूँ!
राह मिलेगी एक दिन मुझको, यह सोच कर रोज उठ जाता हूँ,
इसी उम्मीद के सूरज से, अपने जीवन के पथ पर बढ़ता जाता हूँ!!
© Vishal Kumar Sharma
प्रश्न उठे जो मन में, उनके उत्तर पाने के लिए,
अपने अतित में ही डूब जाता हूँ!
मायाजाल में डूबा मैं, अंधेरों में ही खो जाता हूँ,
न कल का पत्ता न आज का, फ़िर भी आगे बढ़ता जाता हूँ!
राह मिलेगी एक दिन मुझको, यह सोच कर रोज उठ जाता हूँ,
इसी उम्मीद के सूरज से, अपने जीवन के पथ पर बढ़ता जाता हूँ!!
© Vishal Kumar Sharma
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