...

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लड़के,.......खड़े रहे
लड़के......
हमेशा खड़े रहे,

खड़े रहना उनकी मजबूरी नहीं रही बस।
उन्हें कहा गया हर बार,
चलो तुम तो लड़के हो,
खड़े हो जाओ।

छोटी-छोटी बातों पर वे खड़े रहे,
बस में, ट्रेन में, कक्षा के बाहर।

स्कूल विदाई पर जब ली गई ग्रुप फोटो,
लड़कियाँ हमेशा आगे बैठीं और लड़के बगल में हाथ दिए,
पीछे खड़े रहे।

वे तस्वीरों में आज तक खड़े हैं,
बहन-बेटी की शादी में खड़े रहे,
मंडप के बाहर।

बारात का स्वागत करने के लिए,
खड़े रहे रात भर।

हलवाई के पास, कभी भाजी में कोई कमी ना रहे,
खड़े रहे।

खाने की स्टाल के साथ,
कोई स्वाद कहीं खत्म न हो जाए।
खड़े रहे,
विदाई तक।

दरवाजे के सहारे और टैंट के
अंतिम पाईप के उखड़ जाने तक।

बेटियाँ-बहनें जब तक वापिस लौटेंगी
वे खड़े ही मिलेंगे।

वे खड़े...
रहे पत्नी को सीट पर बैठाकर,
बस या ट्रेन की खिड़की थाम कर,
वे खड़े रहे।

बहन के साथ घर के काम में,
कोई भारी सामान थाम कर,
वे खड़े रहे।

माँ के ऑपरेशन के समय ऑपरेशन थियेटर के बाहर घंटों,
वे खड़े रहे।

पिता की मौत पर अंतिम लकड़ी के जल जाने तक,
वे खड़े रहे ,
अस्थियाँ बहाते हुए गंगा के बर्फ से पानी में.

लड़कों!
रीढ़ तो तुम्हारी पीठ में भी है,
क्या यह अकड़ती नहीं ?

© Vishnuuu X