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कान्हा भजन
ना मैं राधा बनना चाहूं ,ना मैं मीरां बनना चाहूं।
मैं दासी तेरे चरणों की, मैं तो घुंघरू बनना चाहूं।।
ना मैं रुकमणी बनना चाहूं, ना मैं गोपी बनना चाहूं।मैं दासी तेरी कान्हा , मैं तो मुरली बनना चाहूं।।
ना मैं सुदामा बनना चाहूं ,ना मैं दाऊ बनना चाहूं।
मैं तो भूखी तेरे प्रेम की, पीतांबर बनना चाहूं।।
ना मैं मैय्या बनना चाहूं, ना मैं गैय्या बनना चाहूं।
मैं तो प्यासी दीदार की, मैं मोर मुकुट बन जाऊं।।
ना मैं माखन बनना चाहूं,न मैं मिश्री बनना चाहूं।
मैं संवरो तेरे प्रेम में, तेरे नयनों का काजल बन जाऊं।।
© Anu
मैं दासी तेरे चरणों की, मैं तो घुंघरू बनना चाहूं।।
ना मैं रुकमणी बनना चाहूं, ना मैं गोपी बनना चाहूं।मैं दासी तेरी कान्हा , मैं तो मुरली बनना चाहूं।।
ना मैं सुदामा बनना चाहूं ,ना मैं दाऊ बनना चाहूं।
मैं तो भूखी तेरे प्रेम की, पीतांबर बनना चाहूं।।
ना मैं मैय्या बनना चाहूं, ना मैं गैय्या बनना चाहूं।
मैं तो प्यासी दीदार की, मैं मोर मुकुट बन जाऊं।।
ना मैं माखन बनना चाहूं,न मैं मिश्री बनना चाहूं।
मैं संवरो तेरे प्रेम में, तेरे नयनों का काजल बन जाऊं।।
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